
कहानी
दो बार लगातार देश के प्रधानमंत्री रहे देवकी नंदन (तिग्मांशु धूलिया) चुनाव में अपनी पार्टी की तीसरी जीत के लिए तैयार हैं। उनके हॉवर्ड रिटर्न बेटे हैं समर प्रताप सिंह (सैफ अली खान), जिसे मीडिया देश का अगला प्रधानमंत्री मान रही है। दोनों के बीच का रिश्ता कहानी की नींव रखता है। लेकिन यहां कुछ भी इतना सरल नहीं है, ना रिश्ते, ना सत्ता से आने वाली पॉवर। देवकी नंदन के अचानक हुई मौत के बाद समर एक ऐसा फैसला लेता है, जिससे सभी हैरान रह जाते हैं। वह प्रधानमंत्री पद को ठुकरा देता है। लेकिन क्यों?
“अब इस राजनीति में चाणक्य नीति लानी पड़ेगी”, समर प्रताप सिंह अपने करीबी विश्वासपात्र गुरपाल से कहता है।
यहां पक्ष और विपक्ष के बीच नहीं, बल्कि पार्टी के बीच राजनीतिक उथल पुथल शुरु हो जाती है। प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए कई दावेदार खड़े हो जाते हैं.. लेकिन इस निर्मम रास्ते पर जीत किसकी होगी, यही सवाल पूरी सीरिज को आगे बढ़ाता है।
दूसरी तरफ VNU (विवेकानंद नेशनल यूनिवर्सिटी) की राजनीति है, जहां किसान आंदोलन के साथ खड़ा होकर युवा छात्र शिवा शेखर (मोहम्मद जीशान अय्यूब) रातोंरात सोशल मीडिया संसेशन बन जाता है। उसके भाषण की गूंज प्रधानंत्री कार्यलय तक भी पहुंचती है। वह राजनीति में नहीं उतरना चाहता, लेकिन इस दलदल गहरे उतरता जाता है। आगे चलकर दोनों कहानी अलग होकर भी आपस में इस तरह जुड़ जाती है कि शिवा भी भौंचक रह जाता है। और फिर शुरु होता है तांडव..

अभिनय
सीरिज की स्टारकास्ट इसका मजबूत पक्ष है। सैफ अली खान, कुमुद मिश्रा, डिंपल कपाड़िया, सुनील ग्रोवर और मोहम्मद जीशान अय्यूब अपने किरदारों में दमदार दिखे हैं। शुरुआत से अंत तक सभी लय में हैं। तिग्मांशु धूलिया भले ही कम वक्त के लिए स्क्रीन पर हैं, लेकिन प्रभावी हैं। जीशान अय्यूब एक दमदार कलाकार हैं और एक युवा छात्र नेता के किरदार में उन्होंने एक बार फिर खुद को साबित किया है। उनके किरदार को निर्देशक ने कई परत दिये हैं और जीशान ने पूरी ईमानदारी से उसे निभाया है।
लेकिन जो सबसे ज्यादा आकर्षित करते हैं, वह हैं सुनील ग्रोवर। समर प्रताप सिंह के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति गुरपाल चौहान के किरदार में सुनील ग्रोवर निर्मम और चालाक दिखे हैं। उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। उनके हिस्से में कई अहम संवाद आए हैं, जिसे प्रभावी ढंग से सामने लाने में वो सफल रहे हैं।
वहीं, गौहर खान, सारा जेन डायस, डिनो मोरियो, संध्या मृदुल, कृतिका कामरा, परेश पाहुजा, अनूप सोनी, हितेश तेजवानी जैसे कलाकारों ने कहानी को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दिया है।

निर्देशन
अली अब्बास जफर ने इस राजनीतिक पार्टी विशेष सीरिज को काल्पनिक कहकर भी सच्चाई से जोड़े रखने की कोशिश की है। लेकिन कहानी में यथार्थता लाने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए हैं। कहीं कहीं पर यह काफी फिल्मी हो जाती है। कई बार सीधी सपाट बात को भी बोलकर समझाया जाना, थोड़ा बचकाना लगता है। एक दृश्य में मैथिली (गौहर खान) “सबूत” के बदले बैग में पैसे लेकर दिन दहाड़े रायसीना हिल जाती है और कहे गए जगह पर पैसे रखकर आ जाती है। लेकिन क्या राष्ट्रपति भवन के सामने इस तरह के संदेहास्पद काम करना इतना आसान है?
बहरहाल, सीरिज शुरूआत में कुछ धीमी है लेकिन हर गुजरते एपिसोड के साथ बांधने में सफल रहती है। खैर, दूसरे सीजन तक यह दर्शकों को बांधे रख पाएगी? इसमें शक है।

तकनीकि पक्ष
गौरव सोलंकी द्वारा लिखित यह सीरिज सियासी खेल का हर दांव दर्शकों के सामने रखने की कोशिश करता है। कुछ हद तक लेखक सफल भी रहे हैं। लेकिन शायद पन्नों पर यह जितनी घुमावदार दिखी होगी, स्क्रीन पर उतनी नहीं लगती है। चूंकि काल्पनिक होते हुए भी यह कहानी देश की राजनीति और परिस्थितियों से जुड़ी हुई है.. आप इसमें एक यथाथर्ता तलाशते हैं। लेकिन कुछ एक दृश्यों में चीजें यथार्थ से कोसों दूर लगती है।
सीरिज की शुरुआत काफी धीमी है, आप लगातार कुछ दमदार ट्विस्ट का इंतजार करते हैं, लेकिन वहां निराशा होती है। संवाद मजबूत रखे गए हैं, जो आपको बांधे रखते हैं। Karol Stadnik की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। दिल्ली की गलियों से कर यूनिवर्सिटी कैंपस तक को कैमरे पर बेहतरीन उतारा गया है। एडिटर स्टीवन एच बर्नेड (Steven H. Bernard) दृश्यों में थोड़ा और कसाव ला सकते थे।

क्या अच्छा क्या बुरा
‘तांडव’ के मजबूत पक्ष हैं इसके स्टारकास्ट और संवाद। औसत कहानी को लेकर इन दो पक्षों ने मिलकर दिलचस्प बनाए रखा है। लेकिन इसके अलावा तांडव निर्देशन और लेखन में कमजोर दिखाई पड़ती है। राजनीति एक ऐसा दिलचस्प विषय है, जिससे जुड़ी कहानी, किस्से जानने के लिए दर्शक हमेशा उत्सुक रहते हैं। कोई इस विषय से अछूता नहीं है। ऐसे में दर्शकों को कुछ नया देना काफी महत्वपूर्ण है। तांडव में नयापन नहीं है।

देखें ना ना देखें
यदि राजनीति के गलियारों में झांकने की दिलचस्पी है, तो ‘तांडव’ जरूर देखी जा सकती है। निर्देशक ने इसे कहीं ना कहीं आजकल की परिस्थितियों से काफी जुड़ा हुआ दिखाया है, लिहाजा दर्शकों की दिलचस्पी अंत तक बनी रहेगी। फिल्मीबीट की ओर से ‘तांडव’ को 2.5 स्टार।
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